Saturday, March 19, 2022

Gangubhai Kathiyawadi Biography | गंगूबाई काठियावाड़ी का जीवन परिचय






नाम

गंगा हरजीवनदास (Gangubai Harjivandas)

उपनाम

गंगूबाई, गंगू

जन्म और स्थान

1939, काठियावाड़ (गुजरात)

पेशा

कोठा चलाना, लेडी डॉन

ग्रह नगर

काठियावाड़

स्टेटस

विवाहित

पति का नाम

रमणीक लाल

पसंद

फिल्म अभिनेत्री बनना

           गंगूबाई का जन्म 1939 में हुआ था और असली नाम गंगा हरजीवनदास था, जो गुजरात के काठियावाड़ में रहती थी। गंगूबाई का परिवार बड़ा ही सम्पन्न परिवार था लेकिन गंगा के सपने कुछ और थे।

जाने-माने लेखक और पत्रकार एस हुसैन जैदी की किताब माफिया क्वीन्स ऑफ मुंबईके मुताबिक गुजरात की रहने वाली भोली-भाली 16 साल की लड़की जो अपने से अधिक उम्र के लड़के के प्यार में पागल हो जाती है। घरवालों के खिलाफ जा कर शादी कर लेती है। ये सारी बातें गंगूबाई के जीवन की है।



गंगूबाई जो पहले गंगा हरजीवनदास के नाम से जानी जाती थी, गंगा का परिवार धनाढ्य था। उसके पिताजी की एक दुकान थी, उस दुकान पर उनके पिताजी ने एक नया अकाउंटेंट रखा था। वो अकाउंटेंट बॉम्बे रहा हुआ था। अकाउंटेंट का नाम रमणीक लाल था।

गंगा पढ़ाई में होशियार होने के साथ-साथ अपने मन में एक सफल अभिनेत्री का सपना पाले हुए थी। उसे बस कैसे भी करके बॉम्बे जाना था और अपना सपना पूरा करना था। जैसे ही उसे ये पता चला कि उसके पिता ने एक नया बाबू रखा है और वो बॉम्बे भी रह चुका है तो उसके मन में रमणीक लाल से दोस्ती करने का विचार आया।



गंगा ने रमणीक से दोस्ती कर ली और धीरे-धीरे यह दोस्ती प्यार में बदल गई, प्यार इतना हो गया कि दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया। जब गंगा ने अपने पिता को यह बात बताई कि वो और रमणीक दोनों आपस में बहुत प्यार करते है और शादी करना चाहते है तो उनके पिता जी ने साफ शब्दों में मना कर दिया। लेकिन प्यार के आगे किसी की भी नहीं चली तो पिता के शब्द भी कैसे चल सकते थे। दोनों ने भाग कर शादी करने का फैसला कर लिया।

काठियावाड़ जैसे छोटे से गाँव की रहने वाली लड़की में पता नहीं इतनी हिम्मत कहाँ से आई कि वो भाग कर शादी कर लेगी। लेकिन जो भी था, उसके मन में उसने रमणीक के साथ भाग कर शादी कर ली और सीधा बॉम्बे को निकल गए।

बॉम्बे यह ही वो जगह जहाँ गंगा अपना सपना पूरा करने के लिए कब से आना चाहती थी और वो शादी करके बॉम्बे में थी, उसे यकीन नहीं हो रहा था। गंगा को अपने पति का चेहरा धीरे-धीरे साफ दिखाई देने लगा था, क्योंकि उनके बीच छोटी-छोटी बातों पर झगड़ा होता रहता था। जब जेब में पैसे ना हो तो आदमी टूट जाता है और वो ही रमणीक के साथ हो रहा था। बॉम्बे तो भाग कर आ गए लेकिन आगे पूरी जिंदगी निकले कैसे? हाथ में नौकरी नहीं और रहने को छत नहीं, इस सोच में आदमी कोई भी काम करने के लिए तैयार हो जाता है। रमणीक ने केवल 500 रुपयों में अपनी पत्नी गंगा को मुंबई के एक मशहूर स्थान रेड लाइट एरिया कमाठीपुरा के एक कोठे वाली को बेच देता है।

रमणीक गंगा को कहता है कि काम ढूँढने के लिए बॉम्बे से बाहर जा रहा है, इसलिए कुछ दिन वो अपनी मौसी के साथ उनके घर पर रहना, काम मिलने के बाद मैं तुझे मौसी के घर से ले जाऊंगा। रमणीक ने जो कहा गंगा वैसे-वैसे करती रही, उसे क्या पता था कि वो रमणीक के मौसी का घर नहीं बल्कि एक वैश्यालय है।



कुछ दिन रहने के बाद उसे पता चल गया कि रमणीक उस कभी भी लेने नहीं आएगा और अब इस हालात के बाद वो अपने गाँव भी नहीं जा सकती है। फिर बेमन से रहने वाली गंगा ने इस वैश्यालय को ही अपना घर मान लिया। जब से गंगा उस कोठे पर आई थी तब से ही वो चर्चे में थी, उसे वहाँ सब गंगू कह कर बुलाते थे।

गंगू का कोठा कमाठीपुरा में पड़ता था और वहाँ का एक खूंखार गुंडा, जिसका नाम शौकत खान था, उसे भी जब पता चला कि कोठे में एक नई लड़की आई है और बहुत ही सुंदर है। तो अगले दिन वो कोठे में पहुँच कर गंगा को घसीटते हुए उसकी मर्जी के बिना शारीरिक संबंध बनाता है। उसे नोचता है, मारता है और पीटता भी है। उसके ऊपर बिना पैसा दिए भी चला जाता है।

पहली बार तो गंगा को कुछ समझ नहीं आया लेकिन दूसरी बार भी जब उसके साथ जबरदस्ती करी तो उसने ठान लिया कि वो शौकत खान को सजा दिलवा कर रहेगी। अपने आस-पास से पता किया तो उसे उसका नाम और उसके मालिक करीम लाला (Gangubai Kathiawadi Karim Lala) का नाम मालूम हुआ। करीम लाला के अड्डे पर पहुँच कर न्याय की गुहार की, पहली बार किसी महिला ने करीम लाला से ऐसे बेखौफ हो कर न्याय की मांग की थी।

करीम लाला ने उसे आश्वाशन दिया कि अगली बार शौकत आए तो मुझे बताना मैं उसका इलाज कर दूँगा। इस आश्वाशन पर गंगा ने करीम लाला के हाथ में एक धागा बाँध कर उसे अपना भाई बना लिया। तीसरी बार जब शौकत कोठे पर आया तो करीम लाला भी खबरी की खबर सुनकर पहुँच गया था, करीम ने शौकत को इतना मारा कि वो अधमरा हो गया। साथ में ये ऐलान कर दिया कि गंगू मेरी मुँह बोली बहिन है इसके साथ किसी ने भी आज के बाद जबरदस्ती की तो अपनी जान गंवा बैठोगे। उस घटना के बाद से गंगू गंगूबाईबन गई।

गंगूबाई का दबदबा इतना हो गया कि कमाठीपुरा का वो कोठा (Gangubai Kathiawadi Kamathipura) उसके नाम कर दिया गया। फिर अपने दबंग अवतार के साथ उसने कोठे में काम करने वाली वेश्याओं के लिए बहुत सारे अच्छे काम किये। गुंडे उस कोठे में आने से डरने लगे थे। वेश्याओं के बच्चों को पढ़ाने का जिम्मा लिया। बिना अपनी मर्जी के आई लड़कियों को वो अपने कोठे में नहीं रखती थी। कोठे पर रहने वाली लड़कियों के लिए गंगूबाई गंगूमाँथी, उनके हक की बात करने के लिए उस समय के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से भी मिली थी।

गंगूबाई का धमाका इतना था कि कमाठीपुरा में कोई भी काम उसके पूछे बिना नहीं होता था, मतलब कि कोई भी छोटा सा काम करने के लिए उसके कोठे तक आना पड़ता था।

इसी धाक को भुनाने के लिए उसे किसी ने राजनीति में उतरने को कहा उसका भाषण सुनने के लिए पूरा आजाद मैदान भर गया था और 1960 के सभी अखबारों के फ्रंट पेज पर उनके भाषण का कवरेज था। भाषण भी दमदार दिया था, उस भाषण से पूरा बॉम्बे थर्रा गया था।

गंगूबाई की मृत्यु साधारण तरीके से ही हुई थी और जब इनकी मौत हुई थी तब पूरे भारत के कोठों में मातम छा गया था। आज भी किसी भी कोठे में चले जाएंगे तो गंगूबाई की तस्वीर जरूर मिलेगी, क्योंकि वेश्यालय वाले इन्हे अपना भगवान मानते है।



Source By : https://thesimplehelp.com

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