बोधिधर्म का जन्म दक्षिण भारत में पल्लव राज्य के कांचीपुरम के राजा परिवार में हुआ था। छोटी आयु में ही उन्होंने राज्य छोड़ दिया और भिक्षुक बन गए। 22 साल की उम्र में उन्होंने संबोधि (मोक्ष की पहली अवस्था) को प्राप्त किया। प्रबुद्ध होने के बाद राजमाता के आदेश पर उन्हें सत्य और ध्यान के प्रचार-प्रसार के लिए चीन में भेजा गया।
महिनों के कठिन सफर के बाद बोधिधर्म चीन देश के नानयिन (नान-किंग) गांव पहुंचे। कहते हैं कि इस गांव के ज्योतिषियों की भविष्यवाणी के अनुसार यहां बहुत बड़ा संकट आने वाला था। बोधिधर्म के यहां पहुंचने पर गांव वालों ने उन्हें ही यह संकट समझ लिया। ऐसा जानकर उन्हें उस गांव से खदेड़ दिया गया। वे गांव के बाहर रहने लगे। उनके वहां से चले जाने पर गांव वालों को लगा की संकट चला गया।
बोधी धर्मन चूंकि एक आयुर्वेदाचार्य थे, तो उन्होंने ऐसे लोगों की मदद की तथा उन्हें मौत के मुंह में जाने से बचा लिया। तब गांव के लोगों को समझ में आया कि यह व्यक्ति हमारे लिए संकट नहीं बल्कि संकटहर्ता के रूप में सामने आया है। गांव के लोगों ने तब ससम्मान उन्हें गांव में शरण दी। बोधी धर्मन ने गांव के समझदार लोगों को जड़ी-बूटी कुटने और पीसने के काम पर लगा दिया और इस तरह पूरे गांव को उन्होंने चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराकर गांव को महामारी से बचा लिया।
एक संकट खत्म होने के बाद गांव पर दूसरा संकट आ गया। हैवानों, लुटेरों की एक टोली ने गांव पर हमला कर दिया और वे क्रूर लोगों को मारने लगे। चारों और कत्लेआम मच गया। गांव वाले समझते थे कि बोधी धर्मन सिर्फ चिकित्सा पद्धत्ति में ही माहिर है लेकिन उन्होंने क्या मालूम था कि बोधी धर्मन एक प्रबुद्ध, सम्मोहनविद् और चमत्कारिक व्यक्ति थे। वे प्राचीन भारत की कालारिपट्टू विद्या में भी पारंगत थे। कालारिपट्टू को आजकल मार्शल आर्ट कहा जाता है।
बोधी धर्मन ने मार्शल आर्ट और सम्मोहन के बल पर उन हथियारबद्ध लुटेरों को हरा दिया और उन्हें भागने पर मजबूर कर दिया। गांव वालों ने बोधी धर्मन को लुटेरों की उन टोली से अकेले लड़ते हुए देखा और वे इसे देखकर चौंक गए। चीन के लोगों ने युद्ध की आज तक ऐसी आश्चर्यजनक कला नहीं देखी थी। वे समझ गए कि यह व्यक्ति कोई साधारण व्यक्ति नहीं है। इसके बाद तो बोधी धर्मन का सम्मान और भी बढ़ गया।
बोधी धर्मन ने गांव के लोगों को आत्म रक्षा के लिए इस विद्या को सिखाया। गांव के लोग उनसे प्यार करने लगे और प्यार से उन्हें धापू बलाने लगे। कई वर्षों बाद जब उन्होंने उस वहां से भारत जाने की इच्छा जतायी तब ज्योतिषियों ने गांव पर फिर से संकट आने की भविष्यवाणी की।
गांव वालों ने एक जगह एकत्र होकर यह निर्णय लिया कि अगर इस संकट से बचना है तो बोधी धर्मन को यहीं रोकना होगा किसी भी हाल में। यदि वह नहीं रुकते हैं तो उन्हें जबरदस्ती रोकना है। किसी भी किमत पर उन्हें जिंदा या मुर्दा रोकना ही होगा। गांव वाले यह जानते थे कि वे बोधी धर्मन से लड़ नहीं सकते तो उन्होंने बोधी धर्मन को रोकने के लिए उनके खाने में जहर मिला दिया, लेकिन बोधी धर्मन यह बात भलिभांति जान गए।
उन्होंने गांव वालों से कहा कि तुमने ऐसा क्यों किया? तुम मुझे मारना क्यों चाहते हो? गांव वालों के कहा कि हमारे ज्योतिषियों अनुसार आपके शरीर को यहीं दफना दिया जाए तो हमारा गांव हमेशा के लिए संकट से मुक्त हो जाएगा। बोधी धर्मन ने कहा, बस इतनी सी इच्छा। बोधी धर्मन ने गांव वालों की इस बात को स्वीकार कर लिया और उन्होंने जहर मिला वह भोजन बड़े ही चाव से ग्रहण कर लिया।
संद सद्गुरु ने एक कहानी सुनाई थी जो कि इस प्रकार है। चीन का राजा वू भारत के किसी महान बौद्ध भिक्षु के आने का इंतजार कर रहा था। क्योंकि वह जानते था कि भारत में एक से एक रहस्यमयी और चमत्कारिक ऋषि, मुनि, संत और भिक्षु रहते हैं। वू के मन में कई तरह के धार्मिक और दार्शनिक प्रश्न इकट्ठे हो गए थे।
वे चीन में बौद्ध धर्म का महान संवरक्षक था। उसको किसी भविष्यक्ता ने कहा कि भारत से कोई महान भिक्षु आएगा और चीन का भाग्य बदल जाएगा। इसके बाद उसने उस भिक्षु के स्वागत के लिए भरपूर तैयारियां कर ली थी। लेकिन सालों तक कोई भिक्षु नहीं आया, कोई भी बौद्ध गुरु नहीं आया।
फिर एक दिन यह संदेश आया कि दो महान भिक्षु हिमालय पार करके चीन आएंगे और बौद्ध धर्म के संदेशों का प्रचार करेंगे। यह सुनकर राजा फिर से स्वागत की तैयारी में लग गया। कुछ काल के इंतजार के बाद, चीन राज्य की सीमा पर दो लोग नजर आए। ये थे बोधिधर्म और उनका एक शिष्य।
वू ने जब दोनों को देखा तो उसे बहुत निराश हुई। उसने सोच था कि कोई वृद्ध, ज्ञानी और महान होगा, लेकिन ये दोनों तो बिल्कुल साधारण और युवा लग रहे थे। महज 22-23 साल का लड़का और महान भिक्षु? ऐसा कैसे हो सकता है। वू ने तो सुन रखा था कि वे बड़े ज्ञानी और महान हैं, लेकिन ये तो थके हारे युवक नजर आ रहे हैं।
दरअसल, पर्वतों में महीनों की लंबी यात्रा से थके हुए बोधिधर्म भी राजा पर अपना कुछ खास प्रभाव नहीं छोड़ पाए। हालांकि प्रभुद्ध व्यक्ति किसी पर प्रभाव छोड़ने की तमन्ना भी नहीं रखते। खैर, राजा ने किसी तरह अपनी निराशा को छिपाया और दोनों भिक्षुकों का हंसते हुए स्वागत किया। उसने उन्हें अपने शिविर में बुलाया और उन्हें बैठने का स्थान देकर उनके भोजन आदि की व्यवस्था की।
दोनों की थकान उतरने के बाद राजा ने उनसे वार्तालाप शुरू की। वार्तालाप के बाद सवाल जवाब का दौरा शुरू हुआ तो राजा ने बोधिधर्म से कहा, “क्या मैं आपसे एक प्रश्न कर सकता हूं?”
बोधिधर्म ने कहा बोले, 'बिल्कुल कर सकते हैं।' राजा वू ने पूछा, 'इस सृष्टि का स्रोत क्या है?' बोधिधर्म ने राजा की ओर देखकर हंस दिए और बोले बोले, 'यह तो बड़ा मूर्खताभरा प्रश्न है! कोई और प्रश्न पूछिए।'
राजा वून ने खुद को अपमानित महसूस किया और निराश हो गया। उसने सोच इतने महत्वपूर्ण प्रश्न को यह युवक मूर्खतापूर्ण कह रहा है तो फिर यह जानता ही क्या होगा? राजा ने तो इस तरह के दार्शनिक प्रश्नों की एक लंबी सूची बना रखी थी। अब वह सोच में पड़ गया। राजा ने भीतर ही भीतर खुदको बहुत अपमानित और क्रोधित महसूस करते हुए भी खुद को संभाले रखा और कहा, 'चलिए, मैं आपसे दूसरा प्रश्न पूछता हूं। मेरे अस्तित्व का स्रोत क्या है?”
यह सुनकर बोधिधर्म और भी जोर से हंसे और बोले, 'यह तो और भी मूर्खतापूर्ण प्रश्न है! कुछ और पूछिए।'
दो महत्वपूर्ण प्रश्न थे, ‘इस सृष्टि का स्रोत क्या है’ और ‘मेरे अस्तित्व का स्रोत क्या है’। दोनों महत्वपूर्ण प्रश्न जिसके आधार पर संपूर्ण दर्शन और धर्म खड़ा हुआ था उसे बोधिधर्मन ने एक झटके में खारिज कर दिया। राजा समझ गया कि यह खुद ही मूर्ख है।
राजा का पारा तो सातवें आसमान पर था, लेकिन फिर भी उसने खुद को संभालते हुए तीसरा प्रश्न पूछा। तीसरा प्रश्न उसका बहुत ही अलग था। उसने पूछा, “बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार करने के लिए मैंने कई ध्यान कक्ष बनवाए, सैकड़ों बगीचे लगवाए और हजारों अनुवादकों को प्रशिक्षित किया। मैंने इतने सारे प्रबंध किए हैं। क्या मुझे मुक्ति मिलेगी?”
यह सुनकर बोधिधर्म गंभीर हो गए। वह खड़े हुए और अपनी बड़ी-बड़ी आंखें राजा की आंखों में डालकर बोले, “क्या! तुम और मुक्ति? तुम तो सातवें नरक में गिरोगे।” (बौद्ध धर्म के मुताबिक, मस्तिष्क के सात स्तर होते हैं। सबसे नीचले स्तर को सातवां नरक कहते हैं)
बोधी धर्मन का यह जवाब सुनकर राजा वू तो आगबबूला हो गया। उसने बोधी धर्मन को अपने राज्य से बाहर निकाल दिया। बोधिधर्म को इससे कोई फर्क नहीं पड़ा। राजा वू के राज्य से निकाले जाने के बाद बोधिधर्म पर्वतों में चले गए। वहां उन्होंने कुछ शिष्यों को इकट्ठा किया और पर्वतों में ही ध्यान करने लगे। जिस पहाड़ पर वे ध्यान करते थे उसे चाय कहते थे।
एक दिन उस पहाड़ी पर उन भिक्षुकों को कुछ अलग किस्म की पत्तियां दिखाई दी। बोधिधर्म ने जांच-पड़ताल के बाद पाया कि अगर इन पत्तियों को उबालकर पिया जाए, तो इससे नींद भाग जाती है। इसे पीकर वे अब पूरी रात सतर्क रहकर ध्यान कर सकते थे और इस तरह से चाय की खोज हुई।
हालांकि एक दंतकथा के अनुसार चाय की उत्पत्ति बोधी धर्मन की पलकों के कारण हुई थी। दरअसल, ध्यान करते हुए एक दिन बोधिधर्म सो गए थे जो गुस्से में उन्होंने अपनी पलके काट कर जमीन पर फेंक दी थी। जहां उन्होंने पलकें फेंकी थी वहां हरी पत्तियां उग आई जिसे बाद में चाय के रूप में जाना जाने लगा।
Movie Bodhidharman (Chennai v/s Chaina)
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